Monday, July 11, 2011

आज खुद अपनी दीवानगी

आज खुद अपनी दीवानगी पर मैं हैरान नहीं,

रस्मे -वफ़ा टूट भी जाए तो पशेमान नहीं ..

मैकदे में झूमते रहने का ही है इल्म मुझको,

चाहे हाथों में मेरे कोई भरा जाम नहीं ...

वो जो उतरा था मय की जगह मुझमे साकी,

आज उसको भी मेरी मस्ती का गुमान नहीं....

टूट जाती है डोर अक्ल की उस एक पल में,

बेखुदी होती है जब फिक्र का सामान नहीं

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