Monday, March 26, 2012

शायद ज़िन्दगी बदल रही है !!


शायद ज़िन्दगी बदल रही है !!


जब मैं छोटा था , शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी ..

मुझे याद है मेरे घर से " स्कूल " तक का वो रास्ता , क्या क्या नहीं था
वहां , चाट के ठेले , जलेबी की दुकान , बर्फ के गोले , सब कुछ ,


अब वहां " मोबाइल शॉप ", " विडियो पार्लर " हैं , फिर भी सब सूना है ..

शायद अब दुनिया सिमट रही है ...
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जब मैं छोटा था , शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी .

मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे , घंटो उडा करता था , वो लम्बी " साइकिल रेस ",
वो बचपन के खेल , वो हर शाम थक के चूर हो जाना ,

अब शाम नहीं होती , दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है .

शायद वक्त सिमट रहा है ..

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जब मैं छोटा था , शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी ,

दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना , वो दोस्तों के घर का खाना , वो लड़कियों की
बातें , वो साथ रोना , अब भी मेरे कई दोस्त हैं ,

पर दोस्ती जाने कहाँ है , जब भी " ट्रेफिक सिग्नल " पे मिलते हैं " हाई " करते
हैं , और अपने अपने रास्ते चल देते हैं ,

होली , दिवाली , जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं ..

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जब मैं छोटा था , तब खेल भी अजीब हुआ करते थे ,

छुपन छुपाई , लंगडी टांग , पोषम पा , कट थे केक , टिप्पी टीपी टाप .

अब इन्टरनेट , ऑफिस , हिल्म्स , से फुर्सत ही नहीं मिलती ..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है .
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जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है .. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है .

"
मंजिल तो यही थी , बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
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जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है .

कल की कोई बुनियाद नहीं है

और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं .

अब बच गए इस पल मैं ..

तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं ..

इस जिंदगी को जियो न की काटो!!!!!!!!!!

Monday, January 16, 2012

'अब'

यूँ तो कई कश्तियों को पार लगाया है हमने,
अब एक बार किनारे पर रुक कर नज़ारा तो देखें..
बहती नदी मैं नापीं हैं मीलों लम्बी दूरियां,
अब ज़रा माटी की खुशबू मैं खुद को डूबा कर तो देखें..

जब ये चाँद , ये तारे , ये हवा , ये नदियाँ , ये वादियाँ
और ये नज़ारे हैं तेरे भी और मेरे भी ..
तो क्यूँ ना अब एक बार , इन नजारों की ज़न्नत को
अपना बना कर भी तो देखें...

एक दिल, एक मन, एक सोच ,
एक राह और एक चाह को लिए जिया हूँ ,
अब जरा खोल मन पटल ,
तेरी राह पर भी खुद को चला कर भी तो देखें...
दिव्या चुघ

Wednesday, August 10, 2011

Bachpan Ka Zamana.....


Bachpan Ka Zamana Hota Tha,
Khushio.N Ka Khazana Hota Tha.
Chahat Chaand Ko Paane Ki,
Dil Titli Ka Deewana Hota Tha.

Rone Ki Wajha Na Hoti Thi,
Hasne Ka Bahana Hota Tha.
Khaber Na Thai Kuch Subho Ki,
Na Shamo Ka Thikana Hota Tha.

Daadi Ki Kahani Hoti Thi,
Pariuon Ka Fasana Hota Tha.
Pedho Ki Shakhe Chutey They,
Mitti Ka Khilona Hota Tha.

Gam Ki Zuban Na Hoti Thi,
Na Zakhmo Ka Paymana Hota Tha.
Barish Mein Kagaz Ki Kashti,
Har Mousam Suhana Hota Tha.

Wo Khel Wo Sathi Hotey They,
Har Rishta Nibhana Hota Tha.

Monday, July 11, 2011

आज खुद अपनी दीवानगी

आज खुद अपनी दीवानगी पर मैं हैरान नहीं,

रस्मे -वफ़ा टूट भी जाए तो पशेमान नहीं ..

मैकदे में झूमते रहने का ही है इल्म मुझको,

चाहे हाथों में मेरे कोई भरा जाम नहीं ...

वो जो उतरा था मय की जगह मुझमे साकी,

आज उसको भी मेरी मस्ती का गुमान नहीं....

टूट जाती है डोर अक्ल की उस एक पल में,

बेखुदी होती है जब फिक्र का सामान नहीं

Wednesday, July 6, 2011

वो लड.की



उसको देखता हूं तो लगता है यूं
जैसे सुबह की लालिमा लिए
आसमां की क्षितिज पर
एक तारा टिमटिमा रहा हो।
उसकी खामोश निगाहें
कुछ कहना चाहती है मुझसे
होठों पर है ढेर सारी बातें
फिर भी न जाने क्यूं चुप है।
हंसती है वो तो
चमन में फूल खिलते हैं।
बात करती है तो लगता है
दूर कहीं झरने बहते हैं।
उसकी शोख और चंचल अदाएं
मुझको दिवाना बनाती है।
उसकी सादगी हर पल
एक नया संगीत सुनाती है।
इतना तो पता है कि
उसको भी मुझसे प्यार है।
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ,
उस वक्त का इन्तजार है।

मुझसे मेरा हाल न पूछो


मुझसे मेरा हाल न पूछो,अक्सर तनहा रहता हूं
अपने ही साए से दिल की बातें करता रहता हूं

आसमान को छूने वाले कभी तो नीचे आयेंगे
मुझको अपनी हदें पता हैं, जान के छोटा रहता हूं

सुबह का इंतज़ार

एक मुक्कमल सुबह का इंतज़ार है,
मगर हर रात आने वाले चाँद से भी बेहद प्यार है...
नींद जरुरी है सेहत के लिए,
मगर सपने दवाओं से ज्यादा तीमारदार है.
एक दिल, एक जाँ है मुझमे ,
एक ही शक्स हूँ मैं...............
फिर भी आईने में देखकर लगता है,
कितनी ही परछाइयों का अक्स हूँ मैं...