Monday, January 16, 2012

'अब'

यूँ तो कई कश्तियों को पार लगाया है हमने,
अब एक बार किनारे पर रुक कर नज़ारा तो देखें..
बहती नदी मैं नापीं हैं मीलों लम्बी दूरियां,
अब ज़रा माटी की खुशबू मैं खुद को डूबा कर तो देखें..

जब ये चाँद , ये तारे , ये हवा , ये नदियाँ , ये वादियाँ
और ये नज़ारे हैं तेरे भी और मेरे भी ..
तो क्यूँ ना अब एक बार , इन नजारों की ज़न्नत को
अपना बना कर भी तो देखें...

एक दिल, एक मन, एक सोच ,
एक राह और एक चाह को लिए जिया हूँ ,
अब जरा खोल मन पटल ,
तेरी राह पर भी खुद को चला कर भी तो देखें...
दिव्या चुघ