Thursday, June 23, 2011

ऐसी नादानी कर बैठे....

एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे ...
हम तो अल्हड-अलबेले थे ,खुद जैसे निपट अकेले थे , मन नहीं रमा तो नहीं रमा ,जग में कितने ही मेले थे , पर जिस दिन प्यास बंधी तट पर ,पनघट इस घट में अटक गया .
एक इंगित ने ऐसा मोड़ा,जीवन का रथ, पथ भटक गया , जिस "पागलपन" को करने में ज्ञानी-ध्यानी घबराते है , वो पागलपन जी कर खुद को ,हम ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे. एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे .
परिचित-गुरुजन-परिजन रोये,दुनिया ने कितना समझाया पर रोग खुदाई था अपना ,कोई उपचार ना चल पाया , एक नाम हुआ सारी दुनिया ,काबा-काशी एक गली हुई, ये शेरो-सुखन ये वाह-वाह , आहें हैं तब की पली हुई वो प्यास जगी अन्तरमन में ,एक घूंट तृप्ति को तरस गए , अब यही प्यास दे कर जग को ,हम पानी-पानी कर बैठे .
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे . क्या मिला और क्या छूट गया , ये गुना-भाग हम क्या जाने , हम खुद में जल कर निखरे हैं ,कुछ और आग हूँ क्या जाने , सांसों का मोल नहीं होता ,कोई क्या हम को लौटाए , जो सीस काट कर हाथ धरे , वो साथ हमारे आ जाए , कहते हैं लोग हमें "पागल" ,कहते हैं नादानी की है , हैं सफल "सयाना" जो जग में , ऐसी नादानी कर बैठे एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे . एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे . ऐसी नादानी कर बैठे....

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